'जितना मेगापिक्सल उतना मस्त कैमरा', ऐसी ही 5 गलतफहमियां
ज़िंदगी हो या टेक्नॉलजी की दुनिया, गलतफहमियों का बोलबाला हर जगह है। दौड़-भाग के इस दौर में हमारा आमना-सामना अक्सर ऐसी बातों से भी होता है, जो सच नहीं होतीं लेकिन बड़े भरोसे के साथ कही गई होती हैं। टेक्नॉलजी भी इससे अछूती नहीं है। हमारे दोस्त, परिजन, अजनबी कई बार हमें ऐसा कुछ बता देते हैं, जिसकी पड़ताल किए बिना ही हम उसे सच मानने लगते हैं। ऐसे में कई बार हमें नुकसान तो उठाना पड़ता ही है। साथ ही एक गलत जानकारी को हम बेधड़क आगे भी बढ़ा रहे होते हैं।
उदाहरण के लिए कैमरे का चुनाव करना हो तो हम मेगापिक्सल गिनने लग जाते हैं। प्राइवेट ब्राउज़िंग की बात हो तो इनकॉग्निटो पर 'आंख मूंद कर' भरोसा करने लगते हैं। ज़ाहिर सी बात है, हर एक बात का प्रमाणन करने के लिए ना तो हमारे पास इतना वक्त होता है और ना ही इतनी तवज्जो। ...तो क्यों ना आज ऐसी ही 5 गलतफहमियों पर बात करें जो जुड़ीं हैं टेक्नॉलजी से और रोज़मर्रा के हमारे इस्तेमाल से भी...
'ज्यादा खंभे मतलब ज्यादा सिग्नल'
आपके फोन के ऊपरी हिस्से में दायीं या बायीं ओर सिग्नल के डंडे होते हैं। ऐसा मान लिया गया है कि ये जितने ज्यादा होंगे, सिग्नल कनेक्टिविटी उतनी ही मज़बूत होगी। दरअसल, ये डंडे आपके फोन की नज़दीकी टावर से निकटता दिखाते हैं। ऐसे में इन्हें यह बिल्कुल ना समझें कि पूरी डंडे आने पर आपके फोन का सिग्नल बिंदास काम कर रहा है।
'चुपके से करना है ब्राउज़ तो खोलो इनकॉग्निटो'
'मेगापिक्सल ज्यादा तो कैमरा होगा मस्त'
इस मिथ को समझने के लिए आपको समझना होगा पिक्सल क्या होता है? दरअसल, कोई भी तस्वीर छोटे-छोटे डॉट से मिलकर बनती है, जिन्हें पिक्सल कहा जाता है। इनसे मिलकर ही तस्वीर तैयार होती है। ये पिक्सल, हज़ारों-लाखों छोटे-छोटे डॉट से बनते हैं, जो आम तौर पर आपको फोटो में नज़र नहीं आते। कैमरे की गुणवत्ता तय होती है कैमरा लेंस, लाइट सेंसर, इमेज प्रोसेसिंग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की जुगलबंदी से। उदाहरण के लिए आईफोन 6, जो 8 मेगापिक्सल कैमरे के साथ आता है और बाज़ार में मौज़ूद कई 13 मेगापिक्सल कैमरे वाले फोन को मात दे देता है। फोन में अतिरिक्त मेगापिक्सल सिर्फ आपकी प्रिंट की गई तस्वीर में सहायक हो सकते हैं। यहां एक बात और साफ कर दें कि कोई भी फोन कैमरा, कभी भी डीएसएलआर की कमी पूरी नहीं कर सकता।
'प्रोसेसर हो ज्यादा कोर वाला'
मल्टी कोर प्रोसेसर आपके फोन के कामों को एक-दूसरे में बांट देते हैं, जिससे टास्क जल्दी संभव हो। डुअल कोर, ऑक्टा कोर, क्वाड कोर किसी भी सीपीयू में प्रोसेसर की संख्या बयां करते हैं। डुअल मतलब 2, ऑक्टा का अर्थ 8 और क्वाड का आशय 4 होता है। क्वाड कोर प्रोसेसर सिंगल और डुअल कोर प्रोसेसर से उसी दशा में तेज़ हो सकता है, जब उसे दिए गए काम उसकी क्षमताओं से मेल खाते हों। कुछ ऐप खास तौर से सिंगल या डुअल कोर प्रोसेसर पर चलने के लिए बने होते हैं। ये अतिरिक्त पावर वहन नहीं कर पाते। साथ ही अतिरिक्त कोर से यूज़र अनुभव में कोई सुधार नहीं आता। उदाहरण के लिए ऑक्टा कोर प्रोसेसर पर चल रहे एचडी वीडियो की गुणवत्ता फोन के इंटीग्रेटेड ग्राफिक्स की वजह से भी बिगड़ सकती है। इसलिए क्लॉक स्पीड और प्रोसेसर की संख्या 'रामबाण' इलाज है, ऐसा कहना गलत होगा। इसलिए ही आईफोन उन कुछ फोन से बेहतर प्रदर्शन करते पाए गए, जिनमें डुअल या ज्यादा कोर इस्तेमाल हुए थे।
'ऐप्पल के सिस्टम में वायरस नहीं आता'
तस्वीर - मैकबुक एयर (File)
संभव है, आपने भी कभी अपने ऐप्पल डिवाइस रखने वाले दोस्त से सुना हो - इसमें वायरस कभी आ ही नहीं सकता। दरअसल, दुनिया में ऐसा शायद ही कोई सिस्टम बना है, जिसमें वायरस का प्रवेश ना हो सकता हो। इतना ज़रूर है कि ऐप्पल के मैक कंप्यूटर का बाकी विंडोज़ पीसी के मुकाबले ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है। इसका एक कारण यह भी है कि मैक से ज्यादा संख्या विंडोज़ पीसी की रही है।
संभव है, आपने भी कभी अपने ऐप्पल डिवाइस रखने वाले दोस्त से सुना हो - इसमें वायरस कभी आ ही नहीं सकता। दरअसल, दुनिया में ऐसा शायद ही कोई सिस्टम बना है, जिसमें वायरस का प्रवेश ना हो सकता हो। इतना ज़रूर है कि ऐप्पल के मैक कंप्यूटर का बाकी विंडोज़ पीसी के मुकाबले ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है। इसका एक कारण यह भी है कि मैक से ज्यादा संख्या विंडोज़ पीसी की रही है।
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